Saturday, 9 February 2019

superstition and obscureness अंधविश्वास और अंधकार


                 

अंधविश्वास और अंधकार
(superstition and obscureness)
नमस्कार दोस्तो आज के युग में अंधविश्वास चरम सीमा पर है और आज हम बात भी इसी पर करने वाले है।
आखिर अंधविश्वास है क्या, इसकी क्या परिभाषा है। क्या धार्मिक आस्था एक अंधविश्वास है। क्या ज्योतिष एक अंधविश्वास है। अंधविश्वास का यदि संधिविच्छेद किया जाये तो यह है – अंध + विश्वास।
superstition and obscureness
अंध – अँधा यानि की बिना सोचे विचारे कार्य करना। जिस प्रकार एक अँधा व्यक्ति रास्ते पर चलने के लिए एक छड़ी या, दुसरे व्यक्ति पर निर्भेर रहता है। उसी प्रकार अंध विचारधारा का व्यक्ति भी बिना सोचे समझे कुछ विचारो के पीछे भागता है…बिना एनालिसिस किये। विश्वास  – किसी भी विचारधारा, व्यक्ति, पार्टी, धर्म, रीति-रिवाज का अनुसरण करना विश्वास है। जिस प्रकार किसी अंधे व्यक्ति को अपनी मंजिल तक पहुचने के लिए किसी के सहारे की जरूरत होती है वैसे ही अंधविश्वास के अंधकार को खत्म करने के लिए हमे शास्त्रों की जरूरत है।

धर्म – अक्सर सभी धर्मो के अनुयायी यही बोलते है की हमारे धर्म की पुस्तक ईश्वर ने भेजी है या आसमान से आई है। क्या ये सच हो सकता है? क्या ईश्वर कोई पुस्तक सभी धर्मो के लिए भेजेगा वो भी अलग अलग लॉजिक के साथ। क्या विज्ञानं सभी धर्मो के लिए अलग अलग है, क्या मैथ अलग अलग धर्मो के लिए अलग अलग है, नहीं। जो सत्य है वो सत्य है। वो १००, ५००, १०००, ५०००, १०००० साल पहले भी सत्य था आज भी और हमेशा सत्य रहेगा। मैथ में नए लॉजिक सोचे जा सकते है लेकिन १+१=२ ही रहेगा वो ३ नहीं होगा, इसी तरह से धर्म भी गतिशील है, बिना एनालिसिस किये कोई भी बात को मानना परमात्मा के और, प्रकृति के नियमो के खिलाफ है। किसी पुराने लॉजिक को नए नियमो के साथ परिवर्तित करके जो मानव कल्याण के लये अच्छा हो, रुचिकर हो अपनाना बेहतर होता है, बजाय उसे पूरी तरह से ख़ारिज करने के।

हमें ना तो अंधविश्वासी होना है और ना ही अंधविरोधी। हमें पारखी बनना है ताकि सही गलत की पहचान कर सके। अगर कोई धर्म कहता है या  कोई धर्म गुरु सिर्फ अपनी बात मनवाते हो ओर शास्त्रों को  प्रमाणित नही करते हो उनको छोड़ दो, क्योंकि जिस तरीके से मानव जाति प्रगतिशील है उसी तरीके से धर्म भी। परमात्मा ने अपनी गवाई के लिए शास्त्रों में प्रमाणित करने के लिए शास्त्र दिए है।

लेकिन समय के साथ कुछ विश्वास समाज में इतने गहरे से प्रविष्ट हो गए की आजकल लोग या तो उन्हें पूरी तरीके से नकार कर अंधविश्वास मानते है या फिर पूर्ण विश्वास जब एक समाज परिपक्व होता है तो उसे किसी भी विचार, कार्य को पूर्ण तरीके से नाही नकारना चाहिये और, नाही विश्वास करना चाहिये। एक अपरिपक्व व्यक्ति, समाज या धर्म ही उसे पूर्ण सत्य मानने की अनुमति देता है।

एक परिपक्व समाज उन विचारो का एनालिसिस करके उसमे समाज की उपयोगिता की उपयोगिता का पता करता है। कुछ अंधविश्वास एसे भी होते है जिसमे समाज या व्यक्ति के लिए निर्देश छिपे हो लेकिन अंधविश्वास के तहत  शास्त्र प्रमाण को पूरी तरह से न नकार कर उस निर्देश को समझना नह चाहता।
क्योंकि हमारे धर्म गर्न्थो में असत्य नही बल्कि सत्य लिखा है प्रमाणित लिखा है अंधविश्वास के अंधकार को हटाने के लिए सतगुरु का होना बहुत जरूरी है।
जिस प्रकार विद्यालय में अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे शिक्षक की आवश्यकता होती  है, ठीक उसी तरह हमारे समाज में भी आध्यात्मिक गुरु की जरूरत होती है।
जैसे असली ओर नकली नोट की पहचान कर पाना मुश्किल है, उसी प्रकार पूरे गुरु की पहचान कर पाना मुश्किल है, क्योंकि नकली धर्म गुरुओं की कमी नही है।
आध्यात्मिक गुरु की पहचान हमारे धर्म गर्न्थो में बताई है।

यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्रा 25 का
भावार्थः- तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है वह वेद के जानने वाला कहा जाता है।

यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्रा 26 का
भावार्थः- जिस पूर्ण सन्त के विषय में मन्त्रा 26 में कहा है वह दिन में 3 तीन बार (प्रातः दिन के मध्य-तथा शाम को) साधना करने को कहता है। सुबह तो पूर्ण परमात्मा की पूजा मध्याõ को सर्व देवताओं को सत्कार के लिए तथा शाम को संध्या आरती आदि को अमृत वाणी के द्वारा करने को कहता है वह सर्व संसार का उपकार करने वाला होता है।

यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्रा 30 का
भावार्थ:- पूर्ण सन्त उसी व्यक्ति को शिष्य बनाता है जो सदाचारी रहे। अभक्ष्य पदार्थों का सेवन व नशीली वस्तुओं का सेवन न करने का आश्वासन देता है। पूर्ण सन्त उसी से दान ग्रहण करता है जो उसका शिष्य बन जाता है फिर गुरू देव से दीक्षा प्राप्त करके फिर दान दक्षिणा करता है उस से श्रद्धा बढ़ती है। श्रद्धा से सत्य भक्ति करने से अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति होती है अर्थात् पूर्ण मोक्ष होता है। पूर्ण संत भिक्षा व चंदा मांगता नहीं फिरेगा।

कबीर, गुरू बिन माला फेरते गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल है पूछो वेद पुराण।।


तीसरी पहचान तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नं. 265 बोध सागर में मिलता है व गीता जी के अध्याय नं. 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है।

गीता अध्याय 17 का श्लोक 23 का 
भावार्थ:- इस मन्त्रा में स्पष्ट किया है कि पूर्ण परमात्मा कविर अर्थात् कबीर मानव शरीर में गुरु रूप में प्रकट होकर प्रभु प्रेमीयों को तीन नाम का जाप देकर सत्य भक्ति कराता है तथा उस मित्रा भक्त को पवित्राकरके अपने आर्शिवाद से पूर्ण परमात्मा प्राप्ति करके पूर्ण सुख प्राप्त कराता है। साधक की आयु बढाता है। यही प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में है कि ओम्-तत्-सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविद्य स्मृतः भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने का ¬ (1) तत् (2) सत् (3) यह मन्त्रा जाप स्मरण करने का निर्देश है। इस नाम को तत्वदर्शी संत से प्राप्त करो। तत्वदर्शी संत के विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक नं. 34 में कहा है तथा गीता अध्याय नं. 15 श्लोक नं. 1 व 4 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई तथा कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान जानकर उसके पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात् साधक लौट कर संसार में नहीं आते अर्थात् पूर्ण मुक्त हो जाते हैं। उसी पूर्ण परमात्मा से संसार की रचना हुई है।

ओर भी बहुत से प्रमाण हमारे सद्ग्रन्थों में मिल जाएगा।
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15 comments:

  1. नौ दिन #मिटटी की मुर्ति के लिए भूखे-नंगे रह लेंगें,
    लेकिन जिस माँ ने #नौ माह पेट में पाला उसके लिए भी कभी नौ दिन भूखे रह के दिखाओ????
    #मानसिक गुलाम

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  2. आज अंधविश्वास चरम सीमा पर है और इस अंधविश्वास को खत्म करने का काम संत रामपाल जी महाराज कर रहे हैं प्रतिदिन अवश्य देखिए संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन साधना टीवी पर श्याम 7:30 बजे से 8:30 बजे तक

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  3. पढ़े लिखे होने का फायदा उठाइए, अपने शास्त्र के आधार पर भक्ति करे।
    जरूर पढ़े अनमोल पुस्तक ज्ञान गंगा।

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. Purn gyan es pustak me hi he or saccha malik kon he vo kese meliga
    En sabhi ko janne ke liye dekhe sadhna tv 7.40 -8.40

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  6. Andh shradha bhakti khatra a jaan. Pade sat bhakti ko jane pramatma k sache tatv gyan ko jane... kabir is god.

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  7. पूर्ण परमात्मा की सदभक्ति से ही हमारा मोक्ष हो सकता है।

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  8. जो लोग शास्त्र में लिखी हुई सत्य बातों को भी देख कर के अंधविश्वास में डूबा जा रहा है तो परमात्मा कहते हैं वह अपना मानव जीवन व्यर्थ कर रहा है

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  9. बिल्कुल आज मानव समाज अंध श्रद्धा में लगा हुआ है जिसका नहीं कोई प्रमाण और नहीं कोई लाभ मिलता है इस प्रकार के अंध विश्वास को तो आत्म हत्या समान समझना चाहिए ,कबीर साहेब ने कहा है कि :_
    कबीर इस संसार को समझाउ कई बार ।
    पूछ पकड़े भेड़ की ,उतरना चाहे पार ।
    फिर कहा है कि:_
    भेड़ पूछ को पंडित पकड़ें ,भादो नदी वीहंगा ।
    गरीबदास वो भवजल डूबे ,जिन्हें नहीं साध सत्संगा ।।
    तो हमे समझना चाहिए जो पत्थर पूजा ,तीर्थ ,व्रत,आदि में उलझाते हैं और शास्त्रानुकूल ज्ञान नहीं देते हो एसो के चक्कर में नहीं पड़कर हमें कोई शास्त्रानुकूल भक्ति साधना बताता हो उसकी शरण में जाना चाहिए ।

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  10. सम्भय समाज से प्राथना है कि अपने सद्ग्रन्थों को पढ़े अंध श्रद्धा भगति नही करें।

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